ये जहां अपना नहीं, अपना जहां तो और है
हम नहीं मालिक यहाँ, मालिक यहाँ तो और है
जिस चमन को हम सदा अपना चमन समझा किये
अब ये जाना उस चमन का, बाग़बां तो और है
जब कभी देखा निकल कर जिस्म की दीवार से
है चलाता जो इसे, वो बेज़ुबां तो और है
छोड़ जायें इस जहां में चाहे जितनी दौलतें
याद जिनसे रह सकें हम, वो निशां तो और हैं
छोड़ देंगे हम इसी दुनिया में सारी रौनकें
अपने जाने को अभी, कितने जहां तो और हैं
चल संभल कर तू ओ निर्मल बेख़ुदी के दौर से
तू ज़मीं पे खो न जाना, आस्मां तो और हैं
Tuesday, May 26, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
जिस चमन को हम सदा अपना चमन समझा किये
ReplyDeleteअब ये जाना उस चमन का, बाग़बां तो और है
--सभी शेर उम्दा. बहुत खूब कहा!!
छोड़ जायें इस जहां में चाहे जितनी दौलतें
ReplyDeleteयाद जिनसे रह सकें हम, वो निशां तो और हैं
वाह निर्मल जी। बहुत अच्छा।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
waah waah ........
ReplyDeletebahut khoob
badhai
changi gazal aa bhaaji
ReplyDelete