Friday, February 27, 2009

अस्थि कलश (भाग २ )

धीरे-धीरे विक्की को सब समझ में आने लगा। उसके सारे दोस्त ट्र्कों के जरिये किस तरह का धंधा करते हैं, वह समझने लगा। कनेडा और अमेरिका के दरम्यान ट्रकों के जरिये ड्रग्स की स्मगलिंग का एक बहुत बड़ा जाल फैला हुआ था। माल इधर से उधर आता-जाता था। ज्यों-ज्यों यह सारी कलई खुलती गई, विक्की के रौंगटे खड़े होते गये। वह पैसा ज़रूर चाहता था मगर इस तरह के पैसे में उसकी कोई रुचि नही थी। लवली की सारी अमीरी का राज़ अब उसके सामने था। उसे शर्म आने लगी कि वह उन लोगों के लिये काम कर रहा है जो उसके दोस्त हैं और अब इस काले धंधे का एक हिस्सा बन चुके हैं। इस बात को लेकर कई बार उसकी लवली, बल्ली और हैप्पी से बहस भी हो जाती थी। आख़िरकार एक दिन इस बहस ने उग्र रूप धारण कर लिया।
"देख विक्की, तू हमें बार-बार समझाने का अपना यह तरीक़ा बदल दे क्योंकि इससे कुछ भी होने-हवाने वाला नहीं है और हम कोई अकेले ही इस धंधे में नहीं हैं। दुनिया के लाखों लोग इस धंधे में लगे हुये हैं।" लवली ने ज़रा तेज़ स्वर में कहा।
"सिर्फ़ कुछ लोगों के इस धंधे में शामिल होने से यह धंधा पवित्र नही हो जाता है लवली," विक्की ने उसे समझाने वाले अंदाज़ में कहा, "चन्द लोग अगर कूयें में गिरे हों तो उनको कूयें से निकालने की बजाय क्या तुम भी कूयें में छलांग लगा दोगे?"
"इसके लिये हम तो उन्हें नहीं कहते," लवली उत्तेजित होने लगा, "हमारा काम तो सिर्फ़ यह है कि माल ले जाकर उसकी डिलीवरी दें और अपना किराया लें, इसके आगे क्या होता है उससे हमें कोई सरोकार नहीं है।"
"कभी यह भी सोचो लवली, कि इस धंधे के कारण जिनको ड्रग्स की लत पड़ जाती है उनका क्या हाल होता है। उनके माँ-बाप पर क्या बीतती है।" विक्की फिर बोला, " मैंने सुना है कि यहाँ स्कूलों-कॉलेजों में छोटी उम्र के लड़के-लड़कियों को फ़्री ड्रग्स देकर उन्हें इसका आदी बनाया जाता है। आदी होने के बाद वे बिचारे इसे पाने लिये कोई सा भी अपराध कर बैठते हैं।"
"मैंने तुमसे कहा न इसमें हमारा कोई दोष नही है।" लवली गर्माहट में बोल रहा था, "माल आगे कहाँ जाता है, कौन खाता-पीता है उससे हमें क्या लेना-देना है।"
"लेना-देना है लवली... लेना-देना है..." विक्की भी तैश में बोला, "नशा समाज को खोखला कर देता है। ज़रा सोचो, एक-एक करके अगर सब-के-सब इसी तरह नशे में डूब गये तो देश और समाज का क्या बनेगा, पूरी मानव-जाति का क्या बनेगा। आने वाली नस्लें कैसी होंगी। जिन ऊँचाईयों पर हम जाना चाहते हैं क्या वह संभव हो पायेगा।"
"तुम अपनी ये दलीलें किसी और को देना, हमें इस तरह के मश्वरे की कोई ज़रूरत नहीं है।" लवली क्रोध में था।
"अच्छा लवली एक बात बताओ," विक्की भी ज़िद पकड़े था, "भगवान न करे,कल को यदि तुम्हारा अपना बेटा नशे में धुत होकर अपनी जान गंवा बैठे तो तुम पर क्या बीतेगी और क्या तुम शालू का रिश्ता किसी ऐसे लड़के के साथ करोगे जो नशेड़ी और नकारा हो?"
"बस.... बहुत हो गया..." लवली लगभग चीख़ते हुये बोला, "आज से तेरे-मेरे रास्ते अलग हैं। अगर तुम हमारे साथ मिलकर नही चल सकते तो तुम अलग होकर जैसा चाहो वैसा करो।"
"ठीक है... मुझे कोई ऐतराज नहीं, लेकिन मैं फिर कहूँगा कि सुधर जाओ, छोड़ दो ये काले धंधे, इसमें पैसा ज़रूर है पर मन की शान्ति नही है। मन की शान्ति तो अपनी मेहनत से कमाये पैसे में ही होती है।"
"तुम अपना भाषण अपने पास रखो और चलते बनो।" हैप्पी भी बोल पड़ा।
"मैं तो जा रहा हूँ पर तुम सब याद रखना, जैसा बोया जाता है वैसा ही काटा जाता है। रिंकू और बिट्टू को ही लो, एक दिन किस तरह तुम्हारे साथ मिल कर यही धंधा करते थे और आज देख लो, ज़रा सी बात पर किस तरह तुम्हारे दुश्मन बने घूम रहे हैं। तुम दोनों एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हो चुके हो। यही मिला है तुम्हें इस धंधे से और...."
"कहा न कि तुम अपना भाषण बन्द करो और दफ़ा हो जाओ। हमें जो करना है, हम जानते हैं। रिंकू-बिट्टू से भी निपटना हमें आता है।" बल्ली भी ग़ुस्से से उबल पड़ा।
इसके बाद विक्की उनसे अलग होकर किसी और कंपनी में ट्र्क चलाने लगा। लवली वगैरह से अब उसकी मुलाक़ात कम होती थी। उड़ती-उड़ती ख़बरों से ही उनके बारे में विक्की को पता चलता था। लवली ग्रुप के साथ रिंकू ग्रुप की दुश्मनी बढ़ती गई। आपस में उनकी कई बार झड़पें भी हो चुकी थीं। एक बार लवली चोटें लगने की वजह से अस्पताल में भी भर्ती हुआ। जब विक्की को पता चला तो वह उसे देखने गया। वहाँ उसने लवली को फिर से समझाने की कोशिश की मगर कोई फ़ायदा न हुआ।
एक दिन विक्की अपने कमरे में बैठा था कि दरवाज़े की घंटी बजी। दरवाज़ा खोला तो देखा कि शालू अपने माता-पिता के साथ खड़ी है। सत सिरी आकाल के बाद,
"तुम तो अब कभी उधर आते नहीं इसलिये हमें ही आना पड़ा।" शालू के पिता एक मिठाई का डिब्बा और एक कार्ड मेज़ पर रखते हुये बोले।
"आप तो जानते ही हैं अंकल, कि इस कनेडा में समय की कितनी किल्लत है, इन्सान चाह कर भी बहुत सारे काम नहीं कर पाता है।" फिर मिठाई के डिब्बे की ओर इशारा करते हुये बोला, "यह... यह किस ख़ुशी में?"
"शालू की शादी पक्क़ी हो गई है और अगले ही इतवार की शादी है।"
"हाँ... और तुम वहाँ एक हफ़्ता पहले ही पहुँच रहे हो.... यानि कि कल" शालू बोल उठी, "क्या तुम मेरी शादी की तैयारी में हाथ नहीं बंटाओगे?"
"ज़रूर... ज़रूर... मगर इतनी जल्दी सब कुछ हो गया मुझे कुछ पता नहीं चला।"
"हम तो कबके तैयार थे" शालू की माँ ने कहा, "बस, लड़का मिलने की देर थी सो हमने और देर करनी उचित नहीं समझी।"
"यह तो बहुत अच्छा हुआ...खुशी की बात है... आप सबको बधाई हो...मैं कल ही आ जाऊँगा।" विक्की ख़ुश होते हुये बोला।
कुछ भी हो, इतना कुछ हो जाने के बाद भी विक्की शालू से स्नेह रखता था। वह दूसरे ही दिन लवली के घर पहुँच गया और शादी की तैयारी में लग गया। कई दिन निकल गये। कब दिन चढ़ता था और कब छुपता था, कुछ पता ही नहीं चलता था। बेटी की शादी जिस घर में हो उस घर वालों को होश कहाँ रहती है। विक्की भी जी जान से तैयारी में जुटा था।
इसी तरह शुक्रवार का दिन आ गया, रविवार को शादी थी। लेडी-संगीत का आयोजन रखा गया था। उसी की तैयारी में सुबह से सब लगे थे। घर के गैराज को खोल दिया गया था। लवली, विक्की, हैप्पी, बल्ली और कई रिश्तेदार गैराज में ही बैठे अपने शुग़ल में मशरूफ़ थे। हलवाई ने एक तरफ़ मिठाई बनाने का काम शुरू कर रखा था। शाम के क़रीब आठ बजे थे पर अभी भी उजाला काफ़ी फैला हुआ था। टोरंटो में गर्मी के दिनों में सूरज नौ बजे के बाद ही छुपता है। घर के अंदर से औरतों के गाने-बजाने की आवाज़ें आ रहीं थीं। लेडी-संगीत अपने पूरे ज़ोरों पर चल रहा था कि घर के सामने एक काले रंग की मर्सिडीज़ आकर रुकी। सबने सोचा कि शायद कोई रिश्तेदार आया होगा। शादी वाले घर में तो आना-जाना लगा ही रहता है। जब काफ़ी देर बीतने के बाद भी कोई कार से न उतरा तो बल्ली को कुछ शक हुआ। उसने लवली को चैक करने का इशारा किया। लवली कार की ओर बढ़ा तो वह अचानक ठिठक गया। कार का काला शीशा धीरे-धीरे नीचे हुआ तो लवली ने रिंकू का चेहरा देख लिया था। वह पलट कर गैराज के अंदर की ओर भागा। विक्की ने भी रिंकू को देख लिया था। वह समझ गया कि लवली अपनी पिस्तौल लेने अंदर की ओर भागा है। वह नहीं चाहता था कि विवाह में कोई पंगा खड़ा हो। इसलिये रिंकू और बिट्टू को समझाने के लिये वह कार की तरफ़ बढ़ा।बल्ली और हैप्पी भी उसके पीछे लपके, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। धाँय-धाँय.... की आवाज़ के साथ रिंकू के पिस्तौल से निकली गोलियां विक्की के शरीर में धँस चुकी थीं। वह लहरा कर वहीं सड़क पर ढेर हो गया। रिंकू और बिट्टू ने गाड़ी स्टार्ट की और भाग लिये। लवली बाहर आया तो विक्की की हालत देख कर सकते में आ गया। बल्ली और हैप्पी गनें उठाये कार के पीछे भागे परन्तु सब बेकार हुआ। हत्यारे तो कबके सुरक्षित भाग चुके थे।
लवली सकते की हालत में ही विक्की की मृतक देह के पास बैठा रहा। बल्ली और हैप्पी ने वापस आकर उसे संभाला। घर में कोहराम मच गया। सारी गली में सन्नाटा छा गया। थोड़ी देर में पुलिस एंबुलेंस सब आ पहुँचे और विक्की की देह को उठा कर अस्पताल पहुँचा दिया गया।
भारत में उस वक्त सुबह थी। बलदेव अपने कमरे में था जब इस दुर्घटना का फोन आया। रज्जी चाय का गिलास लेकर उसे देने कमरे में आई, तब तक बलदेव फोन उठा कर कान से लगा चुका था। अगले ही पल उसके चेहरे की उड़ती रंगत देख कर रज्जी समझ गई कि कुछ अनहोनी हो चुकी है। दुखभरी बेहोशी में बलदेव ने ज्योंहि उसे बताया कि क्या हुआ है, वह स्वयं को संभाल न पाई और अपनी छाती पकड़ कर बैठ गई। उसका दिल डूबता चला गया।
इकलौती औलाद परदेस में जाकर वहां गैंगवार की भेंट चढ़ जाये तो इससे अधिक दुख की बात और क्या हो सकती है। अपना भविष्य संवारने गया बेटा अब कभी वापस नहीं आयेगा, यह सोच कर बलदेव का दिल बैठ गया। बेटे के विवाह के सपने देखने वाली माँ, रज्जी को दिल के ताबड़तोड़ कई अटैक हुये। उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया। कुछ दिन बाद रज्जी की देख भाल का ज़िम्मा लेकर गाँव वालों ने बलदेव को अपने पुत्र के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिये टोरंटो रवाना कर दिया।
"सर... सर... क्या आप मि. बलदेव हैं?"
अचानक बलदेव की तन्द्रा भंग हुई। सामने के. एल. एम. की नीले सूट वाली एक रिसेप्सनिष्ट खड़ी थी। वह कोई भारतीय युवती लग रही थी।
"सर... क्या आप ही मि. बलदेव हैं...?" वह पूछे जा रही थी।
"क्या...?" बलदेव अभी तक अतीत की यादों में खोया हुआ था। पहले तो उसे कुछ समझ न आया फिर संभल कर बोला, "हाँ... हाँ... यस... यस... मैं बलदेव..."
उसने अपना बैग उठाया और काऊंटर पर जा पहुँचा।
"एनिथिंग टू चैक, सर" युवती ने पूछा।
"नो, नथिंग टू चैक" वह बोला
अपना बोर्डिंग पास लेकर वह धीमे-धीमे सिक्योरिटी के गेट की ओर बढ़ने लगा। अंदर जाकर वह इधर-उधर देख ही रहा था कि एक स्क्रीनिंग ऑफ़िसर ने आवाज़ दी,
"हैलो सर... दिस वे प्लीज़..."
उसने चुपचाप उसके पास जाकर अपना बैग उसकी टेबल पर रखा। सेक्योरिटी वाले ने बोर्डिंग पास चैक करके ज्योंहि बैग ऐक्स-रे मशीन में डालना चाहा तो उसके मुँह से निकला,
"नो... नो... नो ऐक्स-रे प्लीज़,"
"कैन यू टेल मी सर... व्हाई नॉट?"
बलदेव ने ख़ामोशी से विक्की की मृत्यु का प्रमाण-पत्र उसके हवाले कर दिया। सर्टिफ़िकेट देख कर सेक्योरिटी वाला भी गम्भीर हो गया। बैग में विक्की की अस्थियों वाला कलश था।
"ओह... आई एम सॉरी सर...हू वाज़ ही?" सिक्योरिटी वाला पूछ बैठा।
"सन... ही वाज़ माई ओनली सन..."
बलदेव की आँखों से आँसू बह चले। टोरंटो की धरती पर उसने न जाने कितने आँसू बहाये थे। वह जबसे यहाँ आया था, आँसुओं के अलावा उसे और कुछ नहीं मिला था। आज जाते-जाते भी वह आँसुओं के अलावा इसे और कुछ नहीं दे पा रहा था। सिक्योरिटी वाले ने आदर सहित अस्थियों वाला कलश उठाया और बिना ऐक्स-रे किये, दूसरी तरफ़ से बलदेव को पकड़ाते हुये बोला,
" सर, आई ऐम रियली वैरी सॉरी... आई कैन अन्डरस्टैण्ड हाऊ डिफ़ीकल्ट इट इज़ फ़ॉर यू..."
बलदेव ने बैग उठाया और अपने गेट की ओर बढ़ने लगा, जहाँ शाम के धुंधलके में नीला सा जहाज़ उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। ड्यूटी फ़्री के सामने से गुज़रते हुये उसके ज़ेहन में रज्जी का चेहरा घूम रहा था। वह कैसे संभालेगा उसे। फिर उसे रज्जी की बात याद आई कि मौत और रिज़्क बन्दे के पास नहीं आते बल्कि बन्दा इनके पास स्वयं जाता है। फिर अचानक उसे अपने पिता के कहे बोल याद आये कि
"सच्चाई और ईमानदारी के बोये बीज कभी ज़ाया नहीं जाते, कभी न कभी तो फूटते ही हैं।"
बलदेव को लवली की याद आई। आते-आते उसने सुना था कि लवली अब सुधर चला है। उसे लगा कि विक्की के बोये बीज अब लवली में फूटने लगें हैं।
( समाप्त)

No comments:

Post a Comment