चल कहीं, दूर तू चल
साथ नही, तन्हा तू चल
मुड़कर न देख पीछे
आगे रख निगाह, चल
आस्मां ज़मीं सब हैं साथ
है वक़्त मेहरबान, चल
गहरा है अंधेरा अगर
उठा हाथ में मशाल, चल
फिर न आयेगा ये पल
अब न कर विचार, चल
जो भी तुझको चाहिये
सब है तेरे पास, चल
शौक़ है गर मंज़िलों का
आस का ले चिराग़, चल
रास्ते में मुश्किलें खड़ीं
घबरा न मेरे यार, चल
कौन है जो हारा न कभी
हर क़दम इम्तिहान, चल
कहाँ न जाने मौत आ मिले
किसका है इंतज़ार, चल
है चमकता वो सिफ़र
क्यों है तू उदास, चल
अब छोड़ निर्मल को यहीं
तू हो न परेशान, चल
Tuesday, February 17, 2009
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कहाँ न जाने मौत आ मिले
ReplyDeleteकिसका है इंतज़ार, चल
है चमकता वो सिफ़र
क्यों है तू उदास, चल
अब छोड़ निर्मल को यहीं
तू हो न परेशान, चल
andaaj achcha hai
निर्मल जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteकौन है जो हारा न कभी
ReplyDeleteहर क़दम इम्तिहान, चल
-बहुत खूब साहेब!! उम्दा बात कही है.
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