Tuesday, February 17, 2009

चल कहीं, दूर तू चल

चल कहीं, दूर तू चल
साथ नही, तन्हा तू चल

मुड़कर देख पीछे
आगे रख निगाह, चल

आस्मां ज़मीं सब हैं साथ
है वक़्त मेहरबान, चल

गहरा है अंधेरा अगर
उठा हाथ में मशाल, चल

फिर आयेगा ये पल
अब कर विचार, चल

जो भी तुझको चाहिये
सब है तेरे पास, चल

शौक़ है गर मंज़िलों का
आस का ले चिराग़, चल

रास्ते में मुश्किलें खड़ीं
घबरा मेरे यार, चल

कौन है जो हारा कभी
हर क़दम इम्तिहान, चल

कहाँ जाने मौत मिले
किसका है इंतज़ार, चल

है चमकता वो सिफ़र
क्यों है तू उदास, चल

अब छोड़ निर्मल को यहीं
तू हो न परेशान, चल

4 comments:

  1. कहाँ न जाने मौत आ मिले
    किसका है इंतज़ार, चल

    है चमकता वो सिफ़र
    क्यों है तू उदास, चल

    अब छोड़ निर्मल को यहीं
    तू हो न परेशान, चल
    andaaj achcha hai

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  2. निर्मल जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।

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  3. कौन है जो हारा न कभी
    हर क़दम इम्तिहान, चल


    -बहुत खूब साहेब!! उम्दा बात कही है.

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  4. फ़ालो करें और नयी सरकारी नौकरियों की जानकारी प्राप्त करें:
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