Sunday, March 7, 2010

वो मेरी उल्फ़त,वो है मुहब्बत

नज़ारे देखे वो आज हमने कि दिल में मस्ती छलक रही है
मिला मुझे वो उसी की ख़ुशबू फ़िज़ां में अबतक महक रही है

कहाँ से आया किधर से उतरा मुझे अभी तक समझ न आया
मगर ज़ेहन में वही सुरीली ख़री-ख़री धुन ख़नक रही है

लगे है शायद इसी तरह से वो सबको अपना पता है देता
तभी तो देखूँ मेरी ये धड़कन नई सी धुन पे धड़क रही है

मुझे तो उसकी पड़ी वो आदत न देखूँ उसको लगे न अच्छा
इसीलिये तो जिधर भी देखूँ उसी की सूरत झलक रही है

वो मेरी उल्फ़त, वो है मुहब्बत, वो चैन मेरा, वो दिल की राहत
किया उजाला, है उसने इतना हयात सारी चमक रही है

इश्क़ नशा है चढ़ा जिसे भी उसे तो निर्मल रहे न सुध-बुध
जुनूं में डूबा मुझे भी देखो ये चाल कैसी बहक रही है

2 comments:

  1. संस्कृतछंद- भुजंगप्रयातं भवेद्‍ यश्चतुर्भि:=एक पंक्ति में १२अक्षर यगण(यमाता ।ऽऽऽ) के क्रम से।
    फ़ारसी बहर=फ़ऊल फेलन फ़ऊल फ़ेलन-२
    ज़ेहाले मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल्दोरायनैना बनाय बतियां।
    कि ताबे हिजरां नदारम एजां न लेहो काहे लगाय छतियां॥

    शबाने हिजरां दराज़ चूं जुल्फ बरोजे बसलत चो उम्र कोतह।
    सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कै से काटूं अंधेरी रतियां॥

    यकायक अज़ दिल दो चश्मे जादू बसद फरेबम बबुर्द तस्कीं।
    किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियां॥

    चो शम्मा सोज़ां चो ज़र्रा हेरां हमेशा गिरयां बे इश्क आं मेह।
    न नींद नैना न अंग चैना न आप आवें न भेजें पतियां॥

    बहक्के रोजे विसाले दिलबर कि दाद मारा गरीब खुसरो ।
    सपीत मन के बराय राखूं जो जाए पाऊं पिया के खतियां॥

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  2. बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल है ... हर शेर कमाल का ...

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