Monday, February 15, 2010

कमाल तेरा

मेरी नज़र को नज़र न आता बता ये क्या है कमाल तेरा
ये दिल में मेरे उठ्ठे है हरदम वही पुराना सवाल तेरा

कहाँ है रहता छुपा हुआ तू यही तो सोचूँ घड़ी घड़ी मैं
भटक रहा हूँ नगर-नगर बस लिये ज़ेहन में ख़याल तेरा

तलाश तुझको किया है मैंने ले नाम तेरा जगह-जगह पे
कहीं न पाया सुराग़ कुछ भी यही है मुझको मलाल तेरा

गिने चुनों को दिखाई देता न जाने सबको तु क्यों न दिखता
जो तुझको देखें उन्हें तो जानो दिखे है हर सू जमाल तेरा

करे जो कोई तू मोजज़ा तो हो शाद मेरा जहाने उल्फ़त
नहीं करेगा कभी ये दिल फिर वही पुराना सवाल तेरा

कमी है मुझमें ये मैं भी जानूं जो चाहे तू तो कमी हटा दे
फंसा हुआ है यहाँ तो निर्मल समय का ऐसा है जाल तेरा

4 comments:

  1. गिने चुनों को दिखाई देता न जाने सबको तु क्यों न दिखता
    जो तुझको देखें उन्हें तो जानो दिखे है हर सू जमाल तेरा

    -वाह! क्या खूब कहा है!!

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  2. गिने चुनों को दिखाई देता न जाने सबको तु क्यों न दिखता
    जो तुझको देखें उन्हें तो जानो दिखे है हर सू जमाल तेरा ..

    बहुत खूबसूरत शेर है ... पूरी ग़ज़ल लाजवाब ...

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  3. बेहद वज़नदार अल्फ़ाज हैं निर्मल जी!काबिल ए तारीफ़। तह ए दिल से आपकी कलम का कायल हूँ!

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