Sunday, August 2, 2009

सुख-दुख

मौसम बरसे उपवन में
सुख-दुख बरसे जीवन में
क़ुदरत का ये खेल है सब
क्यों डूबे हम उलझन में
सुख-दुख बरसे.....

चारो ओर हैं फैले अपने
सुख-दुख के ही गीत
दुख की चर्चा होती लेकिन
सुख न किसी का मीत

कहीं सुखों का ढेर, कहीं
दुख ही मन के आंगन में
सुख-दुख बरसे.....

आस-निराश की बांह पकड़
ये जीवन चलता जाये
धूप-छांव के दो रंगों में
पल-पल रंगता जाये

ऊंची-नीची लहरें सब
दर्द उठाये तन-मन में
सुख-दुख बरसे.....

समय ने पैरों से है बांधी
सुख-दुख की पाज़ेब
दुख से फिर घबराना हमको
दे न ज़रा भी ज़ेब

क्षणभंगुर से इस जीवन में
सुख भी होता बंधन में
सुख-दुख बरसे.....

मान लिया कि जग में होती
चन्द ग़मों की मार बुरी
याद हमें वो जब हैं आते
दिल पे चलती एक छुरी

ऐसा न कोई है जिसके
केवल सुख हो दामन में
सुख-दुख बरसे जीवन में

4 comments:

  1. बहुत खूबसूरती से आपने सुख दुख की सच्चाई को उकेरा है इस रचना में। सुन्दर।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. ऐसा न कोई है जिसके
    केवल सुख हो दामन में
    सुख-दुख बरसे जीवन में

    -एकदम सही!! बेहतरीन रचना!!

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  3. ati sundar
    atyant madhur aur saumy geet............
    badhaai !

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  4. बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।

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