अचानक मेरे दिल को क्या हो गया है
अभी तो यहीं था कहाँ खो गया है
कि बैठा था मैं तो तेरी जुस्तजू में
न जाने ये गुमसुम किधर को गया है
मेरे साथ होता है हरदम यही क्यों
तेरी ओर आऊँ तो ये खो गया है
तेरी आरज़ू अब मेरी ज़िन्दगी है
जहां में भटकते कहाँ खो गया है
तेरे प्यार के गीत हरदम सुनूँ मैं
तेरा नाम अब दिलरुबा हो गया है
ये निर्मल तुम्हारे करम का नतीजा
कि मेरे गुनाहों को कुछ धो गया है
Sunday, December 27, 2009
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बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
ਬਈ ਜੀ ਕਮਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਤੁਸਾਂ ਨੇ ਤਾਂ..भाई साहिब जी कमाल कर दिया आपने तो...
ReplyDeleteशौचालय से सोचालय तक
बहुत अच्छा लिखा है आपने..मेरी शुभकामनायें
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