आओ
कि हम
मन से कोहरा
हटायें,
छाया
अंधेरा जो
उसको
मिटायें,
हर बात में
कुछ
नयापन तो
ढूँढें,
हर आँख में
कुछ
अलग सा तो
देखें,
शिखा
प्रेम की युं
हम निरन्तर
जगायें,
सपने हों नये
और
पक्के इरादे,
रिश्तों की
हों न कभी
कच्ची बुनियादें,
ले हाथों में
हाथ
ज़ंजीर इक
बनायें,
माना कि मन पे
होते
कुठाराघात,
लगाते हैं
जब सब
घातों पे घात,
ज़रा-ज़रा फिर
क्यों न
दिल को
सहलायें,
महकता रहे
ख़ुशबू से
सारा चमन,
धरती ही
नहीं केवल
महके
वो गगन,
फिर तो
ये दुनिया
जन्नत ही
बन जाये
आओ
कि हम
मन से कोहरा
हटायें,
छाया
अंधेरा जो
उसको
मिटायें...
Saturday, December 5, 2009
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बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteबहुत दिन बाद दिखे आप!!