नया साल आने से अब ना टला है
पुराना तो लगभग विदा हो चला है
दिये इसने ग़म चाहे ख़ुशियाँ हों बांटी
न सोचो ये अब हमको क्या-क्या मिला है
जो आने को है उसकी महफ़िल सजायें
जो जाने लगा उससे न कोई गिला है
ये दुनिया करे जो मुहब्बत मुहब्बत
तो फिर समझो नफ़रत न कोई बला है
मिलें हाथ सबके जो आपस में हरदम
इनायत में उसकी नया रंग घुला है
दुआ है यही अब न झगड़ें कभी हम
किया जिसने ऐसा वो फूला फला है
नया दौर सबका अमन से लदा हो
तो अपना भी निर्मल भला ही भला है
Tuesday, December 8, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
जो आने को है उसकी महफ़िल सजायें
ReplyDeleteजो जाने लगा उससे न कोई गिला है
अच्छे भाव की पंक्तियाँ निर्मल जी। एक कोशिश ये भी-
यही सच है जीवन में होता रहेगा
मिलने बिछड़ने का ये सिलसिला है
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com