Monday, January 25, 2010

एक और भारत

मेरे देश की याद आने लगी है
मेरे दिल पे बदरी सी छाने लगी है
कभी ना जो उतरी हैं दिल के फ़लक से
वो हर बात मुझको सताने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

वो पिक्चर की बातें, वो टी वी के क़िस्से
वो क्रिकेट की दौड़ें, वो हाकी के क़िस्से
वो नुक्कड़ की बैठक, वो ढाबों की रौनक
वो टमटम की खनखन, वो काफ़ी के हिस्से
घड़ी मुड़ के फिर ना वो आने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

वो अब्बा की ज़ेबों से पैसे चुराना
चुरा कर वो पैसे सिनेमा को जाना
गई रात तक घर को वापस न आना
जो आना तो फिर मार अब्बा की खाना
वही मार दिल को जलाने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

दिया साथ अम्मा ने हरदम हमारा
गर वो ना होती न होता गुज़ारा
सदा उसने ममता की ठंडक से पाला
न जाने कहाँ अब वो चमके है तारा
मुझे याद उसकी रुलाने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

कहाँ से कहाँ ज़िन्दगी आ चुकी है
जो सोचूँ तो इक हूक दिल में उठी है
वतन छोड़ हम परदेस आ बसे हैं
मगर देश की याद मिट ना सकी है
वो अब मेरे सपनों में आने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

न मिलते यहाँ मुझको सावन के झूले
यहाँ लोग तो ख़ास रिश्ते भी भूले
यहाँ दौड़ती भागती ज़िन्दगी है
कोई तो हो जो मेरे मन को छूले
मेरी आरज़ू डगमगाने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

छोड़ें अब, न इतना भी मातम मनायें
ये ग़मगीन चेहरा न सबको दिखायें
अगर मश्वरा आप निर्मल का माने
यहीं मिलके एक और भारत बनायें
नई रोशनी सर उठाने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है
मेरे दिल पे बदरी सी छाने लगी है

1 comment:

  1. बहुत सी पुरानी यादें समेटे आपकी रचना ....... दूर तक दिल की वादियों में गूँजती रहेगी ........... आपको गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई ...

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