सदा मेरे दिल से जो उठती रही
ज़ुबां उसको कहने से रुकती रही
समझ ही न पाये हैं ताज़िन्दगी
ये क्यों सबकी नज़रों में चुभती रही
रहे हम खड़े बस उन्हीं के लिये
युं ही ज़िन्दगी ख़्वाब बुनती रही
ख़ता हम मुहब्बत की कर तो गये
शमा आस की जगती बुझती रही
ज़रा पीछे मुड़, देख अय ज़िन्दगी
कि किस आरज़ू में तु लुटती रही
न दिलवर न दोस्त न हमदम कोई
भरे जग में हरदम तु छुपती रही
तेरे मुंह से निर्मल कभी ना सुना
सरे बज़्म दुनिया जो सुनती रही
Friday, January 15, 2010
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बहुत अच्छा
ReplyDeleteजिंदगी से खूब कहा है आपने
जिंदगी से खूब सुना है आपने
रहे हम खड़े बस उन्हीं के लिये
ReplyDeleteयुं ही ज़िन्दगी ख़्वाब बुनती रही
वाह!! बेहतरीन!!