कभी हो सके तो
आ मेरी तरफ़
भर नज़र कभी
देख मेरी तरफ़,
ये हालत
किसने बनाई है
ये चोट किसने
लगाई है,
राहे ज़िन्दगी
क्यों सितमगरों की
बन आई है,
लेकिन,
तुझे क्या
तू तो हरदम
रहता है दूसरी तरफ़,
कभी मेरी तरफ़
होता
तो समझ पाता,
कि होता है क्या
अभाव में जीना
व्यथा में पिसना
हर पल का रिसना
घड़ी-घड़ी का तड़पना
लंगड़ी ज़िन्दगी का ढोना
और
सदियों तक का रोना,
और
कैसा लगता है तब
जब
समन्दर में रह के
प्यासे रह जाना
सामने पड़ी चीज़ों को
ललचाई नज़रों से
बस देखते जाना,
कैसा लगता है तब
जब
अपनी ही दास्तान में
खलनायक बन के
रह जाना
और
हर उम्मीद का
आसुओं के
सैलाब में
बह जाना,
कैसा लगता है तब ?
लेकिन तुझे क्या
तू तो हरदम
रहता है
दूसरी तरफ़
कभी मेरी तरफ़ आये
तो ही तू
समझ पाये
कि होता है क्या
पल-पल का तड़पना
पल-पल का तड़पना
पल-पल का तड़पना...
Saturday, March 26, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
ओह ...मार्मिक और बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDelete