फागुन आयो रे
दिल-दिल में
उल्लास बड़ा
उत्पात
मचायो रे
फागुन आयो रे,
किरनों ने अब
धुंध को चीरा
मन्द-मन्द है
बहे समीरा,
बगिया में
भंवरा फिर वही
घात लगायो रे
फागुन आयो रे,
ऋतुओं की रानी
है फागुन
एक नहीं
बहुतेरे हैं गुन,
मिलजुल सारे
प्रेम की इक
अलख जगायो रे
फागुन आयो रे,
दिवस बड़े और
रैना छोटी
चुहल करे
नयनों की गोटी,
सजन-सजनिया
होली में मिल
रंग जमायो रे,
फागुन आयो रे,
उलझा जग का
ताना-बाना
कभी कोई
कभी कोई निशाना,
उजड़े लोगों
में दोबारा
आस जगायो रे,
फागुन आयो रे
Thursday, February 11, 2010
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Bahut sundar geet hai ...Badhai!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
जी निर्मल भाई, फागुन आ ही गया..बहुत उम्दा!
ReplyDeleteक्या बात है .. झूम रहा है ब्लॉग फागुन की मस्ती में मिर्मल जी ....... बहुत अच्छा लिखा ........
ReplyDeleteआपको महा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई .......
आपने तो गज़ब ही कर दिया निर्मल जी!उत्पात केवल फागुन ने ही नहीं आपके कलम ने भी मचाया हुआ है सुधी साहित्यिकों के समाज में।
ReplyDeleteवाकई कमाल का गीत है।शुभ शिवरात्रि!
बहुत सुन्दर निर्मल जी..
ReplyDeleteबाहर के मौसम ने हम को ऐसा भरमायो रे,
कंपते-ठिठुरे रात दिवस ने ऐसा भुलवायो रे,
आया फागुन जाना तुमसे,
बढिया गीत रचायो रे...
सचमुच फागुन आयो रे...
सादर
उलझा जग का
ReplyDeleteताना-बाना
कभी कोई
कभी कोई निशाना,
उजड़े लोगों
में दोबारा
आस जगायो रे,
फागुन आयो
अनमोल भावनाओं से भरी
गीत गागर से सचमुच में ही
फागुन छलक रहा है.....अति-सुंदर...आभार
मैने और भी रचनायँ आपकी आज ही पढीं...सभी एक से एक सुंदर....आपके ब्लोग पर आना अच्छा लगा....
शुभ-कामनाएँ
सादर
गीता पंडित