मौसम बरसे उपवन में
सुख-दुख बरसे जीवन में
क़ुदरत का ये खेल है सब
क्यों डूबे हम उलझन में
सुख-दुख बरसे.....
चारो ओर हैं फैले अपने
सुख-दुख के ही गीत
दुख की चर्चा होती लेकिन
सुख न किसी का मीत
कहीं सुखों का ढेर, कहीं
दुख ही मन के आंगन में
सुख-दुख बरसे.....
आस-निराश की बांह पकड़
ये जीवन चलता जाये
धूप-छांव के दो रंगों में
पल-पल रंगता जाये
ऊंची-नीची लहरें सब
दर्द उठाये तन-मन में
सुख-दुख बरसे.....
समय ने पैरों से है बांधी
सुख-दुख की पाज़ेब
दुख से फिर घबराना हमको
दे न ज़रा भी ज़ेब
क्षणभंगुर से इस जीवन में
सुख भी होता बंधन में
सुख-दुख बरसे.....
मान लिया कि जग में होती
चन्द ग़मों की मार बुरी
याद हमें वो जब हैं आते
दिल पे चलती एक छुरी
ऐसा न कोई है जिसके
केवल सुख हो दामन में
सुख-दुख बरसे जीवन में
Sunday, August 2, 2009
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बहुत खूबसूरती से आपने सुख दुख की सच्चाई को उकेरा है इस रचना में। सुन्दर।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ऐसा न कोई है जिसके
ReplyDeleteकेवल सुख हो दामन में
सुख-दुख बरसे जीवन में
-एकदम सही!! बेहतरीन रचना!!
ati sundar
ReplyDeleteatyant madhur aur saumy geet............
badhaai !
बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।
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