हसरत है आख़िरी वैसे तो हर तरफ़ देखो जलवे हज़ार हैं
जो तू नहीं है पास तो सारे बेकार हैं
कोई न आरज़ू मेरी तेरे बग़ैर है
गुलशन में चाहे यूं तो फूल बेशुमार हैं
हसरत है आख़िरी कि तेरे रूबरु हो लूं
वर्ना तो ज़िन्दगी में बचे दिन ही चार हैं
माना कि हम नहीं किसी रिश्ते में हैं बंधे
फिर भी न जाने क्यों रहते हम बेक़रार हैं
अब क्या सुनायें हाले जिगर तुझको अय दोस्त
मुद्दत से उनके प्यार में हम गिरफ़्तार हैं
Sunday, August 19, 2012
Tuesday, May 15, 2012
Sunday, May 13, 2012
Happy mother's day
Friday, May 4, 2012
इश्क़-मुहब्बत ख़रा है पेशा
नई जगह है नया ठिकाना,
बना ही दे तू कोई फ़साना,
तेरी ही दुनिया तेरा ज़माना,
नहीं चलेगा कोई बहाना,
नया मुसाफ़िर नई हैं राहें,
नहीं कभी तू उसे गिराना,
बहुत सहे हैं ग़मों के रेले,
ग़मों से अब तू उसे बचाना,
भटक रहा है बहुत दिनों से,
नहीं अंधेरे लगे निशाना,
जिधर भी देखो सुरों के दरिया,
दे उसको भी इक नया तराना,
किसे वो चाहे किसे वो छोड़े,
न कोई अपना न ही बेगाना,
क़दम-क़दम वो यूं ही चलेगा,
गिरे कभी तो उसे उठाना,
इश्क़-मुहब्बत ख़रा है पेशा,
बिना लिये कुछ, करे दीवाना,
निर्मल भी कुछ उसी के जैसा,
उसे भी तूने होश में लाना,
Sunday, March 25, 2012
ज़िन्दगी की बैटरी
अय ख़ुदा
ज़िन्दगी रोशन
करने की ख़ातिर
तूने जो टार्च
मुझे बख़्शी थी,
उसकी बैटरी न जाने कब
गुनाहों की दलदल के कारण
सीलन से भर गई
ये मुझे पता ही न चला,
और मैं
बटन पे बटन दबाता रहा
कभी इस तरफ़ तो
कभी उस तरफ़
टार्च का रुख़ घुमाता रहा,
मगर
रोशनी की इक
किरन तक न फूटी,
ज़ि्न्दगी को जिधर से भी
देखने परखने की कोशिश की
वो अंधकार में ही डूबी मिली,
और सबसे बड़ी बात
मैम ये भी भूल गया कि
इस बैटरी को दोबारा चार्ज
करने की शक्ति तो तूने
मेरे अंदर ही दबा रखी है,
आसानी से खुलने वाली
परतों तले एक
रोशनी की बड़ी गठरी
छुपा रखी है,
मैं ये भूल गया और
अपनी नासमझी के कारण
ताउम्र मैं अंधेरे से
बाहर न आ सका,
इसलिये मुक्तिपथ जैसा
कभी कोई मार्ग न पा सका,
बैटरी तो पहले ही बैठ चुकी थी
अब तो बटन भी नकारा हो चुका है,
बटन क्या
टार्च का तो हर हिस्सा ही
गया गुज़रा हो चुका है,
इसलिये तू चाहे तो
अब अपनी अमानत छीन भी सकता है
अपनी दी हुई वस्तु पे हक़ है तेरा
जब जी चाहे इसे
वापस उठा सकता है,
कदाचित
तू इस टार्च को फिर से
रिपेयर करना चाहे
या शायद इसे
कोई और ही नया
रंग रूप देना चाहे,
ये हो भी सकता है
नहीं भी हो सकता है.....
ज़िन्दगी रोशन
करने की ख़ातिर
तूने जो टार्च
मुझे बख़्शी थी,
उसकी बैटरी न जाने कब
गुनाहों की दलदल के कारण
सीलन से भर गई
ये मुझे पता ही न चला,
और मैं
बटन पे बटन दबाता रहा
कभी इस तरफ़ तो
कभी उस तरफ़
टार्च का रुख़ घुमाता रहा,
मगर
रोशनी की इक
किरन तक न फूटी,
ज़ि्न्दगी को जिधर से भी
देखने परखने की कोशिश की
वो अंधकार में ही डूबी मिली,
और सबसे बड़ी बात
मैम ये भी भूल गया कि
इस बैटरी को दोबारा चार्ज
करने की शक्ति तो तूने
मेरे अंदर ही दबा रखी है,
आसानी से खुलने वाली
परतों तले एक
रोशनी की बड़ी गठरी
छुपा रखी है,
मैं ये भूल गया और
अपनी नासमझी के कारण
ताउम्र मैं अंधेरे से
बाहर न आ सका,
इसलिये मुक्तिपथ जैसा
कभी कोई मार्ग न पा सका,
बैटरी तो पहले ही बैठ चुकी थी
अब तो बटन भी नकारा हो चुका है,
बटन क्या
टार्च का तो हर हिस्सा ही
गया गुज़रा हो चुका है,
इसलिये तू चाहे तो
अब अपनी अमानत छीन भी सकता है
अपनी दी हुई वस्तु पे हक़ है तेरा
जब जी चाहे इसे
वापस उठा सकता है,
कदाचित
तू इस टार्च को फिर से
रिपेयर करना चाहे
या शायद इसे
कोई और ही नया
रंग रूप देना चाहे,
ये हो भी सकता है
नहीं भी हो सकता है.....
आल सीजन टायर
आल सीज़न टायर जैसे हम
घिसते रहते सड़कों पे हरदम
चलते रहना आदत है पड़ गई
थकने का अब नाम न जाने हम
सर्दी गर्मी बारिश या तूफ़ान
तन पे झेलें हम सारे मौसम
चाहे जितने सुख-दुख राहों में
गाते रहते जीवन की सरगम
गिनती के दिन होते टायर के
घबराते ना उससे फिर भी हम
तेरे हाथ में है चाभी अपनी
जिधर चलाते चल ही पड़ते हम
ड्राईवर मेरे तुम हो तो हमको
ना ही डर है ना ही कोई ग़म
ज्यों-ज्यों चलते घटता है जीवन
बदल ही देना जब जी चाहे तुम....
घिसते रहते सड़कों पे हरदम
चलते रहना आदत है पड़ गई
थकने का अब नाम न जाने हम
सर्दी गर्मी बारिश या तूफ़ान
तन पे झेलें हम सारे मौसम
चाहे जितने सुख-दुख राहों में
गाते रहते जीवन की सरगम
गिनती के दिन होते टायर के
घबराते ना उससे फिर भी हम
तेरे हाथ में है चाभी अपनी
जिधर चलाते चल ही पड़ते हम
ड्राईवर मेरे तुम हो तो हमको
ना ही डर है ना ही कोई ग़म
ज्यों-ज्यों चलते घटता है जीवन
बदल ही देना जब जी चाहे तुम....
Tuesday, January 24, 2012
अभी तक गांव में
ये सुना है, इक दिवानी है अभी तक गांव में
जो मुझे ही याद करती है अभी तक गांव में
हम जहाँ मिलते रहे थे शाम के साये तले
वो सुहानी शाम ढलती है अभी तक गांव में
सात सागर पार करके दूर तो हम आ गये
पर हमारी जान अटकी है अभी तक गांव में
यूं बदल तो सब गया है अब वहाँ फिर भी मगर
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गांव में
चैन मिलता है वहाँ आराम मिलता है वहाँ
हर ख़ुशी की राह मिलती है अभी तक गांव में
ज़िन्दगी रफ़्तार से चलने लगी है हर तरफ़
फिर भी देखो आस बसती है अभी तक गांव में
बिन हमारे शायरी ग़मगीन है रहने लगी
याद अपनी सबको आती है अभी तक गांव में
वो बिचारा तो जहां की भीड़ में है खो गया
कोई निर्मल को बुलाती है अभी तक गांव में
जो मुझे ही याद करती है अभी तक गांव में
हम जहाँ मिलते रहे थे शाम के साये तले
वो सुहानी शाम ढलती है अभी तक गांव में
सात सागर पार करके दूर तो हम आ गये
पर हमारी जान अटकी है अभी तक गांव में
यूं बदल तो सब गया है अब वहाँ फिर भी मगर
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गांव में
चैन मिलता है वहाँ आराम मिलता है वहाँ
हर ख़ुशी की राह मिलती है अभी तक गांव में
ज़िन्दगी रफ़्तार से चलने लगी है हर तरफ़
फिर भी देखो आस बसती है अभी तक गांव में
बिन हमारे शायरी ग़मगीन है रहने लगी
याद अपनी सबको आती है अभी तक गांव में
वो बिचारा तो जहां की भीड़ में है खो गया
कोई निर्मल को बुलाती है अभी तक गांव में
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