हसरत है आख़िरी वैसे तो हर तरफ़ देखो जलवे हज़ार हैं
जो तू नहीं है पास तो सारे बेकार हैं
कोई न आरज़ू मेरी तेरे बग़ैर है
गुलशन में चाहे यूं तो फूल बेशुमार हैं
हसरत है आख़िरी कि तेरे रूबरु हो लूं
वर्ना तो ज़िन्दगी में बचे दिन ही चार हैं
माना कि हम नहीं किसी रिश्ते में हैं बंधे
फिर भी न जाने क्यों रहते हम बेक़रार हैं
अब क्या सुनायें हाले जिगर तुझको अय दोस्त
मुद्दत से उनके प्यार में हम गिरफ़्तार हैं
Sunday, August 19, 2012
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