किसी
दरवाज़े से
किसी
खिड़की से
किसी
झरोखे से,
बख़्श दे
वो रोशनी
जो
मेरे मन को
नूर-नूर
कर दे,
ज़िन्दगी में
जो मेरी
नया
दस्तूर भर दे,
कि न रहे
फिर कमी कोई
हर सांस मेरी
तू अगर
इस क़दर
मख्मूर कर दे,
Wednesday, April 27, 2011
Tuesday, April 19, 2011
दोस्ती
दोस्ती गीत है गुनगुनाने के लिये
दोस्ती ग़ज़ल है इक सुनाने के लिये
ये वो अज़ीम शय है ख़ुदा की जिसे
हौसला और क़िरदार चाहिये निभाने के लिये,
लबों का तबस्सुम है ये, दिलों का सुकून है ये
जज़्बों का लेन-देन तो मुहब्बत का मजमून है ये
कि दोस्ती होती नहीं महज़ वक़्त बिताने के लिये
दोस्त गर साथ है तो डर नहीं तल्ख़ हवाओं का
ग़म नहीं ज़रा भी होता गहरी काली घटाओं का
हर कोशिश कीजिये इक अच्छा दोस्त बनाने के लिये
दोस्त की बातों से हर मौसम ख़ुशगवार हो जाता
सहरा में भी साथ उसके जश्ने-बहार हो जाता
कि दोस्त होते ही हैं इक दूजे पे मिट जाने के लिये
मगर ये वो फूल है जो हर शाख़ पे खिलता नहीं
मिल तो जाते हैं बहुत पर दोस्त कभी मिलता नहीं
ख़ूने जिगर चाहिये, ये ख़ुशबूये रूह पाने के लिये
दोस्ती ग़ज़ल है इक सुनाने के लिये
ये वो अज़ीम शय है ख़ुदा की जिसे
हौसला और क़िरदार चाहिये निभाने के लिये,
लबों का तबस्सुम है ये, दिलों का सुकून है ये
जज़्बों का लेन-देन तो मुहब्बत का मजमून है ये
कि दोस्ती होती नहीं महज़ वक़्त बिताने के लिये
दोस्त गर साथ है तो डर नहीं तल्ख़ हवाओं का
ग़म नहीं ज़रा भी होता गहरी काली घटाओं का
हर कोशिश कीजिये इक अच्छा दोस्त बनाने के लिये
दोस्त की बातों से हर मौसम ख़ुशगवार हो जाता
सहरा में भी साथ उसके जश्ने-बहार हो जाता
कि दोस्त होते ही हैं इक दूजे पे मिट जाने के लिये
मगर ये वो फूल है जो हर शाख़ पे खिलता नहीं
मिल तो जाते हैं बहुत पर दोस्त कभी मिलता नहीं
ख़ूने जिगर चाहिये, ये ख़ुशबूये रूह पाने के लिये
Sunday, April 17, 2011
दोपहर गर्मी की
दोपहर गर्मी की ये सुनसान सी वीरान सी है
चिलचिलाती धूप ये पिघले हुये अरमान सी है
चल पड़ी लू हर तरफ़ बेनूर शक़्लें हो चलीं सब
दूर तक ख़ामोशियां हैं फिर ये क्यों नादान सी है
किस तरह मौसम ने बदली चाल अपनी ये न पूछो
सर्द झोंकों की तमन्ना हो गई बेजान सी है
तप रहे हम इस तरह कि अब ना कोई आरज़ू है
बिन तेरे ये ज़िन्दगी बेकार इक सामान सी है
प्यास होंठों की बुझे ना दिल में हलचल हर घड़ी है
ले चलो मुझको कहीं अब ये जगह अन्जान सी है
ये तो चलते ही रहेंगे सिलसिले रंजो अलम के
ग़म न कर निर्मल कि ये कुछ देर के मेहमान सी है
चिलचिलाती धूप ये पिघले हुये अरमान सी है
चल पड़ी लू हर तरफ़ बेनूर शक़्लें हो चलीं सब
दूर तक ख़ामोशियां हैं फिर ये क्यों नादान सी है
किस तरह मौसम ने बदली चाल अपनी ये न पूछो
सर्द झोंकों की तमन्ना हो गई बेजान सी है
तप रहे हम इस तरह कि अब ना कोई आरज़ू है
बिन तेरे ये ज़िन्दगी बेकार इक सामान सी है
प्यास होंठों की बुझे ना दिल में हलचल हर घड़ी है
ले चलो मुझको कहीं अब ये जगह अन्जान सी है
ये तो चलते ही रहेंगे सिलसिले रंजो अलम के
ग़म न कर निर्मल कि ये कुछ देर के मेहमान सी है
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