Monday, February 15, 2010

कमाल तेरा

मेरी नज़र को नज़र न आता बता ये क्या है कमाल तेरा
ये दिल में मेरे उठ्ठे है हरदम वही पुराना सवाल तेरा

कहाँ है रहता छुपा हुआ तू यही तो सोचूँ घड़ी घड़ी मैं
भटक रहा हूँ नगर-नगर बस लिये ज़ेहन में ख़याल तेरा

तलाश तुझको किया है मैंने ले नाम तेरा जगह-जगह पे
कहीं न पाया सुराग़ कुछ भी यही है मुझको मलाल तेरा

गिने चुनों को दिखाई देता न जाने सबको तु क्यों न दिखता
जो तुझको देखें उन्हें तो जानो दिखे है हर सू जमाल तेरा

करे जो कोई तू मोजज़ा तो हो शाद मेरा जहाने उल्फ़त
नहीं करेगा कभी ये दिल फिर वही पुराना सवाल तेरा

कमी है मुझमें ये मैं भी जानूं जो चाहे तू तो कमी हटा दे
फंसा हुआ है यहाँ तो निर्मल समय का ऐसा है जाल तेरा

Thursday, February 11, 2010

फागुन

फागुन आयो रे
दिल-दिल में
उल्लास बड़ा
उत्पात
मचायो रे
फागुन आयो रे,

किरनों ने अब
धुंध को चीरा
मन्द-मन्द है
बहे समीरा,
बगिया में
भंवरा फिर वही
घात लगायो रे
फागुन आयो रे,

ऋतुओं की रानी
है फागुन
एक नहीं
बहुतेरे हैं गुन,
मिलजुल सारे
प्रेम की इक
अलख जगायो रे
फागुन आयो रे,

दिवस बड़े और
रैना छोटी
चुहल करे
नयनों की गोटी,
सजन-सजनिया
होली में मिल
रंग जमायो रे,
फागुन आयो रे,

उलझा जग का
ताना-बाना
कभी कोई
कभी कोई निशाना,
उजड़े लोगों
में दोबारा
आस जगायो रे,
फागुन आयो रे